तो सुनो ये कहानी, मधुरिमा की जुबानी
एक ऐसी कहानी, सदियों पुरानी
जिसमें राजा न रानी, ना परियां दीवानी॥
कुछ यादों कि रवानी , गम-ऐ-उल्फत की निशानी।
न तेरी न मेरी, हम सब की कहानी॥
തല്ക്കാലം ഇത്രയും മതി, ബാക്കി പിന്നീടാവാം...എന്താ?
20 April 2009
कुछ लफ्ज़.. / വെറുതെ ഒരു കവിത..
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